Monday, February 23, 2009

उसके कारण ...

उसके कारण कुछ नहीं हो पाता है...
रास्ता भूल जाता हूँ और समय यूँ ही कट जाता है |
...
..
उसको देख के ना जाने क्या हो जाता है,
दिल और दिमाग दोनों आपे में ना रह पाता है | 
उसके चेहरे पे ना जाने क्या पाता हूँ |
जब भी देखता हूँ, दुनिया भूल जाता हूँ |
उसकी हँसी की क्या कहें, ऐसी बात है,
ऐसा लगता है जैसे मरूभूमि में हो गई बरसात है |
...
...
और क्या कहें उसके बारे में...
...
...
जिस दिन ना देखूं उसको,  उस दिन तो हाल बुरा हो जाता है,
जिंदगी खोई - खोई और हर चेहरे पे उसका चेहरा नज़र आता है |

उस से बात करने की चाहत दिल में दबाये रखा हूँ,
...
पर कैसे कह दूँ,
उसके लिए तो मैं आज भी एक अजनबी बना बैठा हूँ |

- "क्षितिज़" की दास्ताँ, ब्लॉग की जुबान

2 comments:

  1. acha hai....bhayyaji ab ek do aur blog ke baad batana hoga ki yeh hai kaun ;)

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  2. Kaun hai, woh to shayaad immediately nahin bata sakta. If see my last line, i do not see a reason why strangers need to be given a name. But, yes, she is not nameless and imaginary. ;-)

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